Monday, February 14, 2011

तेरा नाम


हिज्र की रात कल जब मेरे घर आई थी ,
साथ में कुछ ख्वाहिशों की बारात लायी थी ,

नर्म अंधेरे मुझे ओढाकर,
एक तेरे सपनो की चादर ;
जगा रहे थे ...

तेरी यादों के जुगुनू , आसमान में
तेरा चेहरा बना रहे थे ..

उन ठहरे हुए पलों में मैंने तुझे छुआ था !!!

एहसास की खामोशियों में मेरा जिस्म
तेरी रूह से मिलकर थरथराता है !!

फिर मैं तेरा नाम ले लेता हूँ

और अपनी तनहा रूह को
चंद साँसे उधार दे देता हूँ !!

मैं तेरा नाम ले लेता हूँ !!!
 
 

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

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