Monday, November 24, 2008

शायर

दोस्तों , मैं अपनी ये नज़्म दुनिया के तमाम शायर ,कवि और गीतकारों को नज़र करता हूँ. After all , जीना तो कोई इनसे सीखें !

" शायर "

सुबह से शाम , और शाम से सुबह ;
ज़िन्दगी यूँ ही बेमानी है दोस्तों ....

किसी अनजान सपने में ,
एक जोगी ने कहा था ;
कि, एक नज़्म लिखो तो कुछ साँसे उधार मिल जायेंगी ...

शायर हूँ मैं ;
और जिंदा हूँ मैं !!!

आसमान के फरिश्तों ;
जरा झुक के देखो तो मुझे....

मुझ जैसा शायर सुना न होंगा ,
मुझ जैसा इंसान देखा न होंगा ...

खुदा मेरे ;
ये साँसे और कितने देर तलक चलेंगी !!

4 comments:

  1. ये शायर अमर है
    सांसों को अपनी शब्दों का नाम देदो
    क़यामत को इस कलम की पयाम देदो
    तेरा क्या बिगड़ पायेगा कोई
    मौत को तुम अब मोहब्बत का काम देदो :)
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
    आप
    ๑۩۞۩๑वन्दना
    शब्दों की๑۩۞۩๑
    सब कुछ हो गया और कुछ भी नही !!
    इस पर क्लिक कीजिए
    आभार...अक्षय-मन

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  2. एक नही कई कवितायें पढी...क्षमा करें...कविता जब तक आम दर्द के साथ ना जुङे...तब तक आत्मालाप या आत्म-निवेदन जैसी ही रहती है...आपसे जुङी महिलाओं को बहुत अच्छी लगेगी...और क्या कहूँ...और हाँ, सबकी तरह आपको अपने ब्लाग पर आने का निमन्त्रण नहीं दूँगा...आप बोर हो सकते हैं...उम्मेद साधक

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  3. सच कहा आपने ये नज्‍में ही तो हमारी संगी ,साथी और हमसफर हैं...जो ताउम्र हमें जीना सिखलाती रहती हैं...

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