Saturday, November 29, 2008

शहीद हूँ मैं .....

दोस्तों , मेरी ये नज़्म , उन सारे शहीदों को मेरी श्रद्दांजलि है , जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर , मुंबई को आतंक से मुक्त कराया. मैं उन सब को शत- शत बार नमन करता हूँ. उनकी कुर्बानी हमारे लिए है ............

शहीद हूँ मैं .....

मेरे देशवाशियों
जब कभी आप खुलकर हंसोंगे ,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी नही हँसेंगे...

जब आप शाम को अपने
घर लौटें ,और अपने अपनों को
इन्तजार करते हुए देखे,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी भी मेरा इन्तजार नही करेंगे..

जब आप अपने घर के साथ खाना खाएं
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी भी मेरे साथ खा नही पायेंगे.

जब आप अपने बच्चो के साथ खेले ,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
मेरे बच्चों को अब कभी भी मेरी गोद नही मिल पाएंगी

जब आप सकून से सोयें
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
वो अब भी मेरे लिए जागते है ...

मेरे देशवाशियों ;
शहीद हूँ मैं ,
मुझे भी कभी याद कर लेना ..
आपका परिवार आज जिंदा है ;
क्योंकि ,
नही हूँ...आज मैं !!!!!
शहीद हूँ मैं …………..


Thursday, November 27, 2008

आज मेरा देश जल रहा है , कोई तो मेरे देश को बचा ले


आज सुबह देखा तो Bombay की घटनाओ ने दिल दहला दिया . मुझे ये बात समझ नही आती है कि कोई भी आतंकवादी , हमारे जैसा सामर्थ्यवान देश में कैसे बार - बार चले आतें है , शायद दुनिया में भारत ही अकेला ऐसा देश है जो इतना सामर्थ्यवान होने के बावजूद इन हमलों को रोक नही पाता है.

अच्छा ; अगर बाहर के आतंकवादी हमलों से हमारा पेट नही भरता , जो आपस में ही धर्म, भाषा, जाती , इत्यादि के नाम पर लड़ लेते है . और इन सारी बातों में सिर्फ़ बेक़सूर लोग मरते है ...

मेरा देश अब पूरी तरह से banana country बन गया है ... किसी को क्या दोष दे... politicians और officers अपनी दुनिया में ही रहतें है ....


आईये दोस्तों मेरे साथ प्रार्थना करें...

आज मेरा देश जल रहा है ,
कोई तो मेरे देश को बचा ले.


कौन है ये ?
कोई हिंदू ,कोई मुस्लिम, कोई सिख या कोई ईसाई ;
क्या इनका कोई चेहरा भी है ?
क्या ये इंसान है ....
क्यों ये मेरे देश की हत्या करतें है ,
क्यों ये मेरी माँ का सीना छलनी करतें है ..


हे प्रभु ;
कोई कृष्ण ,कोई बुद्ध ,कोई नानक , कोई ईसा ;
पैगम्बर बन कर मेरे देश आ जाए ..
मेरे देश को जलने से बचाए .
मेरे देश को मरने से बचाए..

आओं दोस्तों , मिल कर हम सब,
इंसानियत का धर्म आपस में फैलाएं
मिल कर हम सब मेरे देश को बचाएँ ...
मेरे देश को बचाएँ

Wednesday, November 26, 2008

आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.......

ORIGINALLY , I BELONG TO NAGPUR. I AM BORN AND BROUGHTUP IN THIS WONDERFUL CITY; SEEN MOST OF MY LIFE'S UPS AND DOWNS HERE . RECENTLY ON 19TH FEB 2008, I LANDED AT NAGPUR AIRPORT AND I DON'T KNOW WHY, BUT ALL OF SUDDEN ALL THE PAST MEMORIES OF MY LIFE FLASHED UPON ME . I COMPOSED THIS POEM. I DEDICATE THIS POEM TO ALL THOSE, WHO LEAVE THEIR BIRTHPLACE; JUST IN THE SEARCH OF " एक अदद रोजी रोटी "……...

आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
बहुत पुराना सा सब कुछ याद दिला गया ;
मुझको ;
मेरे शहर ने रुला दिया.....

यहाँ की हवा की महक ने बीते बरस याद दिलाये ,
इसकी खुली ज़मीं ने कुछ गलियों की याद दिलायी....
यहीं पहली साँस लिया था मैंने ,
यहीं पर पहला कदम रखा था मैंने ...
इसी शहर ने जिन्दगी में दौड़ना सिखाया था.
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....

दूर से आती हुई माँ की प्यारी सी आवाज ,
पिताजी की पुकार और भाई बहनो के अंदाज..
यहीं मैंने अपनों का प्यार देखा था ;
यहीं मैंने परायों का दुलार देखा था ;
कभी हँसना और कभी रोना भी आया था यहीं ,
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....

कभी किसी दोस्त की नाखतम बातें..
कभी पढाई की दस्तक , कभी किताबो का बोझ
कभी घर के सवाल ,कभी दुनिया के जवाब ..
कुछ कहकहे ,कुछ मस्तियां , कुछ आंसू ,और कुछ अफ़साने .
थोड़े मन्दिर,मस्जिद और फिर बहुत से शराबखाने ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....

पहले प्यार की खोई हुई महक ने कुछ सकून दिया
किसी से कोई तकरार की बात ने दिल जला दिया ..
यहीं किसी से कोई बन्धन बांधे थे मैंने ...
किसी ने कोई वादा किया था मुझसे ..
पर जिंदगी के अलग मतलब होते है ,ये भी यहीं जाना था मैंने ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....

एक अदद रोटी की भूख ने आंखो में पानी भर दिया
एक मंजिल की तलाश ने अनजाने सफर का राही बना दिया..
कौन अपना , कौन पराया , वक्त की कश्ती में, बैठकर;
बिना पतवार का मांझी बना दिया मुझको,
"वही रोटी ,वही पानी ,वही कश्ती ,वही मांझी , मैं आज भी हूँ.."
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....

लेकर कुछ छोटे छोटे सपनो को आंखों में ,मैंने ;
जाने किस की तलाश में घर छोड़ दिया,
मुझे जमाने की ख़बर न थी.. आदमियों की पहचान न थी.
सफर की कड़वी दास्ताँ क्या कहूँ दोस्तों ....
बस दुनिया ने मुझे बंजारा बना दिया ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....

आज इतने बरस बाद सब कुछ याद आया है ..
कब्र से कोई “विजय” निकल कर सामने आया है..
कोई भूख ,कोई प्यास ,कोई रास्ता ,कोई मंजिल ..
किस किस की मैं बात करूं यारों ;
मुझे तो सारा जनम याद आया है.....
आज मेरे शहर ने मुझे बहुत रुलाया है........


Tuesday, November 25, 2008

अपनी बात - I

दोस्तों , आज मैंने सोचा की आप से कुछ अपने बारे में कहूँ , यूँ ही कुछ मेरा छोटा सा परिचय :

नाम तो आप जानते ही हो , विजय है , मेरा जन्म 17-11-1966 को नागपुर [ महाराष्ट्र ] में हुआ है , मैं वैसे आँध्रप्रदेश से हूँ. पर मेरा बचपन और जवानी का बहुत सा समय नागपुर में ही गुजरा .

शुरुवाती दिनों में बहुत से दुःख देखे और सबको अपने भीतर समेटे हुए आगे बढ़ा . ज़िन्दगी की परेशानियों ने बहुत कुछ सिखाया और अपनी मंजिल तक पहुँचने में मेरा आत्मबल भी बढाया . [ अगर मैं कहूँ की street lights के नीचे बैठकर पढने से लेकर , तीन तीन दिनों तक भूखा रहकर ,अपनी ज़िन्दगी के सफर को मैंने तय किया है तो , आपको आश्चर्य होंगा ]

पर आगे तो बढ़ना ही था सो सारी मुश्किलों का सामना करते हुए आज यहाँ आप लोगो तक पहुँचा हूँ.

Today I have 6 degrees to my credit ,which includes Engineering, MBA, Economics, Management etc. and I have worked in three companies and having an experience of more than 18 years in Marketing, Business Development and Sales .

I am presently working as Sr. General Manager - Marketing & Sales in MIC Electronics Limited , Hyderabad.

मुझे अध्यात्म में गहरी रूचि है ,और आपको वो अहसास मेरी नज्मों में नज़र आता होंगा. [ in fact I try to put an undertone of spiritual Sufism in my poems ]

मुझे पढने का बहुत शौक है , मैंने करीब ५००० किताबें पढ़ी होंगी , और मेरी personal library में इस वक्त करीब ३००० किताबें होंगी.

मुझे photography का भी बहुत शौक है [
http://photographyofvijay.blogspot.com/ ] ,

मुझे संगीत में गहरी रूचि है , मेरे मनपसंद गायक किशोरकुमार, आशा, जगजीत सिंह है , मैं भी गाना गा लेता हूँ , और मैं drums भी बजा लेता हूँ. और हाँ मौका मिला तो dance भी करता हूँ.. [ recently on my son’s 7th birthday I danced on “ pappu can’t dance saala ]

और मैं basically बहुत comedy में विश्वास रखता हूँ ,और मेरे आस पास की दुनिया को हंसाते रहता हूँ . और हमेशा एक कोशिश की है की मैं एक बेहतर इंसान बन कर रहूँ ,और मैं शायद कामयाब भी हुआ हूँ. मेरी दुनिया मुझसे बहुत प्यार करती है

आप सभी को मेरा personal blog देखने के लिए आमंत्रण दे रहा हूँ . [
http://vijaykumar1966.blogspot.com/ ]

मैंने श्री शिर्डी के साईबाबा पर reserch किया है , लगभग तीन साल तक उनके बारें में information collect करते रहा और अब एक ब्लॉग बनाया है . आप सभी को आमंत्रण दे रहा हूँ , कृपया उस पर visit करिए [
http://shrisaibabaofshirdi.blogspot.com/ ]

मुझे drawings और पेंटिंग्स में भी रूचि है और मेरे ब्लॉग [
http://artofvijay.blogspot.com/ ] पर आपको मेरी कला से रुबुरु कराऊंगा .

और एक बात , मेरे भीतर , अभी भी एक बच्चा है , जो रंगों से प्यार करता है खिलोनो से प्यार करता है और कॉमिक्स से प्यार करता है [ शायद इसलिए भी कि मुझे बचपन में ये सब नही मिला ] any way बहुत जल्दी मैं आप लोगों के लिए कॉमिक्स पर ब्लॉग बनाऊंगा , ताकि आप भी अपने बचपन में खो जाए .

मुझे खाना भी बहुत पसंद है , specially पंजाबी खाना , जब भी मैं Ludhiyana जाता हूँ , मस्त दबा कर खाता हूँ और मोटा बन कर लौटता हूँ.

और हाँ , मैं बहुत आलसी हूँ , जब भी समय मिले तो मैं सो जाता हूँ..

अब बातें करें मेरी नज्मों की ,जिन के कारण मैं आप सभी से जुड़ पाया .

दोस्तों , poetry comes so naturally to me . दोस्तों करीब १९८५ से मैं poems लिख रहा हूँ और अपने २० साल के अन्तराल में करीब २०० -२५० poems लिख पाया [ I think this is a good quality parameter for writing ]


मैंने अपनी सारी नज्में हमेशा एक घंटे के भीतर ही लिख ली है [ except one poem "पाप" ,जो एक super psycho poem है , मैंने अपने एक दोस्त के निजी जीवन पर लिखी है , इसे compose करने के लिए दो दिन लगे , किसी दिन उसको भी publish करूँगा ]

कविताएं मेरे लिए मेरे बच्चों की तरह है, बस मेरी दुनिया में , मैं और मेरी कविताएं..कविताओ के मन से.......मेरी एक छोटी सी कोशिश है कि, मेरी कविताओं से मन की गाठें खुले ,आप थोड़ा ठहर कर पीछे देखें , कुछ याद करें .....कुछ भूलें .....कही रुके हुए कदमो को तलाशे .....कुछ सूखे हुए आँसुओ को देख ले ........किसी को याद कर ले ...किसी को भूल जाएं .... किसी को देख ले ...किसी के बारे में सोच ले...कुछ साँसे ,किसी के नाम कर दे , कुछ साँसे किसी से उधार ले ले...किसी को कुछ दे दे , किसी से कुछ ले ले ......आओ फिर से प्यार कर ले..................

लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूँ , पर समय कि कमी है , मैं फिर हाज़िर हो जाऊँगा आपकी खिदमत में .......मैं अपनी कुछ photos यहाँ दे रहा हूँ ..

जाते जाते .. आज मैं जो कुछ भी हूँ , खुदा के करम से , दोस्तों कि दुआओं से, और अपनी मेहनत और आत्मबल से हूँ. मैं अपने घुटनों के बल पर बैठ कर उस परमपिता परमेश्वर को प्रणाम कर धन्यवाद् देता हूँ और उसका शुक्रगुजार होता हूँ .

आप सभी के लिए तीन संदेश :
1. you have to win over yourself , you don't have to fight with others ,fight with yourself and win on you.
2. There is no rehearsal, no retakes, no turning back , so give your best to life and others.
3. हमेशा कोशिश करिये की अच्छा इंसान बने , यकीन मानिए ये कसरत बहुत आसान है ...
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My photos…………………………
विजय - अपनी टीम के साथ coimbatore project में ...


विजय - अभी कुछ दिन पहले ......


विजय --- 17 साल पहले ........................

Monday, November 24, 2008

भोर

भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा,

रवि ने किया दूर ,जग का दुःख भरा अन्धकार ;
किरणों ने बिछाया जाल ,स्वर्णिम किंतु मधुर
अश्व खींच रहें है रविरथ को अपनी मंजिल की ओर ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी रथ का सार्थ बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

सुंदर प्रभात का स्वागत ,पक्षिगण ये कर रहे
रही कोयल कूक बागों में , भौंरें ये मस्त तान गुंजा रहे ,
स्वर निकले जो पक्षी-कंठ से ,मधुर वे मन को हर रहे ;
तू भी हे मानव , जीवन रूपी गगन का पक्षी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

खिलकर कलियों ने खोले ,सुंदर होंठ अपने ,
फूलों ने मुस्कराकर सजाये जीवन के नए सपने ,
पर्णों पर पड़ी ओस ,लगी मोतियों सी चमकने ,
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी मधुबन का माली बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

प्रभात की ये रुपहली किरने ,प्रभु की अर्चना कर रही
साथ ही इसके ,घंटियाँ , मंदिरों की एक मधुर धुन दे रही ,
मन्त्र और श्लोक प्राचीन , पंडितो की वाणी निखार रही
तू भी हे मानव ,जीवन रूपी देवालय का पुजारी बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

प्रक्रति ,जीवन के इस नए भोर का स्वागत कर रही
जैसे प्रभु की सारी सृष्टि ,इस का अभिनन्दन कर रही ,
और वसुंधरा पर ,एक नए युग ,नए जीवन का आव्हान कर रही ,
तू भी हे मानव ,इस जीवन रूपी सृष्टि का एक अंग बन जा !
भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

भोर भई मनुज अब तो तू उठ जा !!!

शायर

दोस्तों , मैं अपनी ये नज़्म दुनिया के तमाम शायर ,कवि और गीतकारों को नज़र करता हूँ. After all , जीना तो कोई इनसे सीखें !

" शायर "

सुबह से शाम , और शाम से सुबह ;
ज़िन्दगी यूँ ही बेमानी है दोस्तों ....

किसी अनजान सपने में ,
एक जोगी ने कहा था ;
कि, एक नज़्म लिखो तो कुछ साँसे उधार मिल जायेंगी ...

शायर हूँ मैं ;
और जिंदा हूँ मैं !!!

आसमान के फरिश्तों ;
जरा झुक के देखो तो मुझे....

मुझ जैसा शायर सुना न होंगा ,
मुझ जैसा इंसान देखा न होंगा ...

खुदा मेरे ;
ये साँसे और कितने देर तलक चलेंगी !!

Saturday, November 22, 2008

इंतजार

लिखा है एक नज़्म तेरे नाम पर,
कि , इसमे तुझे तेरा अक्स मिल जाये ...
अल्लाह का तुझ पर रहम हो ,
तू, किसी की ' हीर ' बन जाये !!!


" इंतजार "

मेरी ज़िन्दगी के दश्त,
बड़े वीराने है
दर्द की तन्हाईयाँ ,
उगती है
मेरी शाखों पर नर्म लबों की जगह.......!!
तेरे ख्यालों के साये
उल्टे लटके ,
मुझे क़त्ल करतें है ;
हर सुबह और हर शाम .......!!

किसी दरवेश का श्राप हूँ मैं !!

अक्सर शफ़क शाम के
सन्नाटों में यादों के दिये ;
जला लेती हूँ मैं ...

लम्हा लम्हा साँस लेती हूँ मैं
किसी अपने के तस्सवुर में जीती हूँ मैं ..

सदियां गुजर गयी है ...
मेरे ख्वाब ,मेरे ख्याल न बन सके...
जिस्म के अहसास ,बुत बन कर रह गये.
रूह की आवाज न बन सके...

मैं मरीजे- उल्फत बन गई हूँ
वीरानों की खामोशियों में ;
किसी साये की आहट का इन्तजार है ...

एक आखरी आस उठी है ;
मन में दफअतन आज....
कोई भटका हुआ मुसाफिर ही आ जाये....
मेरी दरख्तों को थाम ले....

अल्लाह का रहम हो
तो मैं भी किसी की नज़र बनूँ
अल्लाह का रहम हो
तो मैं भी किसी की " हीर " बनूँ...


[ Meanings : दश्त : जंगल // शफ़क : डूबते हुए सूरज की रोशनी // दफअतन : अचानक ]

Friday, November 21, 2008

शादी


तुम्हे याद हो न हो ,
मुझे तो हर बात याद है !

कैसी ख्वाबों की दुनिया थी
तेरी और मेरी .....

तुम्हे याद है
शहर की हर गली में ,
तुम; मेरा साया ढूँढ्ती थी !

तुम्हे याद है ,
तेरे लिए ,मेरी बाहों में
कुल-जहान का सकून था !

तुम्हे याद है ,
मेरी वजूद ही; तेरे लिए ;
सारी दुनिया का वजूद था !

सब कुछ , सच में ..
कुछ पिछले जन्मों की बात लगती है .....

सुना है आज
तेरी शादी है ;
कोई अजनबी ,
तेरे संग ब्याह कर रहा था...

सच ; मैंने भी तूझे ,
कभी बहुत चाहा था............

जिस हाथ ने तेरी मांग भरी ,
काश उस हाथ की उँगलियाँ मेरी होती.....!
जिन कदमो के संग तुने फेरे लिये,
काश उन कदमो के साये मेरे होते....!
जो मंत्र तुम दोनों के गवाह बने,
काश उन्हें मैंने भी दोहराया होता !!

कोई अजनबी तेरे संग ब्याह कर रहा था !!!

शहर वाले तेरी शादी का खाना खा रहे थे ;
मुझे लगा ,
आज मेरी तेरहवी है !!!!

Thursday, November 20, 2008

" गाड़ी "

दोस्तों , मेरी एक पुरानी नज़्म ,आपके लिए हाज़िर है ... मेरी गुजारिश है की just flow with the words and immerse yourself in the scene of the potry...This is unusally long poem but a perfect story teller...This is one of my best love poems ....

गाड़ी


कल खलाओं से एक सदा आई कि ,
तुम आ रही हो...
सुबह उस समय , जब जहांवाले ,
नींद की आगोश में हो; और
सिर्फ़ मोहब्बत जाग रही हो..
मुझे बड़ी खुशी हुई ...
कई सदियाँ बीत चुकी थी ,तुम्हे देखे हुए !!!

मैंने आज सुबह जब घर से बाहर कदम रखा,
तो देखा ....
चारो ओर एक खुशबु थी ,
आसमां में चाँद सितारों की मोहब्बत थी ,
एक तन्हाई थी,
एक खामोशी थी,
एक अजीब सा समां था !!!
शायाद ये मोहब्बत का जादू था !!!

मैं स्टेशन पहुँचा , दिल में तेरी तस्वीर को याद करते हुए...
वहां चारो ओर सन्नाटा था.. कोई नही था..

अचानक बर्फ पड़ने लगी ,
यूँ लगा ,
जैसे खुदा ....
प्यार के सफ़ेद फूल बरसा रहा हो ...
चारो तरफ़ मोहब्बत का आलम था !!!

मैं आगे बढ़ा तो ,
एक दरवेश मिला ,
सफ़ेद कपड़े, सफ़ेद दाढ़ी , सब कुछ सफ़ेद था ...
उस बर्फ की तरह , जो आसमां से गिर रही थी ...
उसने मुझे कुछ निशिगंधा के फूल दिए ,
तुम्हे देने के लिए ,
और मेरी ओर देखकर मुस्करा दिया .....
एक अजीब सी मुस्कराहट जो फकीरों के पास नही होती ..
उसने मुझे उस प्लेटफोर्म पर छोडा ,
जहाँ वो गाड़ी आनेवाली थी ,
जिसमे तुम आ रही थी !!
पता नही उसे कैसे पता चला...

मैं बहुत खुश था
सारा समां खुश था
बर्फ अब रुई के फाहों की तरह पड़ रही थी
चारो तरफ़ उड़ रही थी
मैं बहुत खुश था

मैंने देखा तो , पूरा प्लेटफोर्म खाली था ,
सिर्फ़ मैं अकेला था ...
सन्नाटे का प्रेत बनकर !!!

गाड़ी अब तक नही आई थी ,
मुझे घबराहट होने लगी ..
चाँद सितोरों की मोहब्बत पर दाग लग चुका था
वो समां मेरी आँखों से ओझल हो चुके था
मैंने देखा तो ,पाया की दरवेश भी कहीं खो गया था
बर्फ की जगह अब आग गिर रही थी ,आसमां से...
मोहब्बत अब नज़र नही आ रही थी ...

फिर मैंने देखा !!
दूर से एक गाड़ी आ रही थी ..
पटरियों पर जैसे मेरा दिल धडक रहा हो..
गाड़ी धीरे धीरे , सिसकती सी ..
मेरे पास आकर रुक गई !!
मैंने हर डिब्बें में देखा ,
सारे के सारे डब्बे खाली थे..
मैं परेशान ,हैरान ढूंढते रहा !!
गाड़ी बड़ी लम्बी थी ..
कुछ मेरी उम्र की तरह ..
कुछ तेरी यादों की तरह ..

फिर सबसे आख़िर में एक डिब्बा दिखा ,
सुर्ख लाल रंग से रंगा था ..
मैंने उसमे झाँका तो,
तुम नज़र आई ......
तुम्हारे साथ एक अजनबी भी था .
वो तुम्हारा था !!!

मैंने तुम्हे देखा,
तुम्हारे होंठ पत्थर के बने हुए थे.
तुम मुझे देख कर न तो मुस्कराई
न ही तुमने अपनी बाहें फैलाई !!!
एक मरघट की उदासी तुम्हारे चेहरे पर थी !!!!!!

मैंने तुम्हे फूल देना चाहा,
पर देखा..
तो ,सारे फूल पिघल गए थे..
आसमां से गिरते हुए आग में
जल गए थे मेरे दिल की तरह ..

फिर ..
गाड़ी चली गई ..
मैं अकेला रह गया .
हमेशा के लिए !!!
फिर इंतजार करते हुए ...
अबकी बार
तेरा नही
मौत का इंतजार करते हुए.........

Wednesday, November 19, 2008

परायों के घर

कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;
सपनो की आंखो से देखा तो,
तुम थी !

मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था, मैंने तुम्हारे लिए,
एक उम्र भर के लिए ...


आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ......
शायद उन्ही रास्तों में ..
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो !!


क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........

कब्र


जब तुम ज़िन्दगी की टेड़ी-मेढ़ी
और उदास राहों पर
चलकर ,थककर ;
किसी अपने की तलाश करने लगो ,
तो एक पुरानी ,जानी पहचानी राह पर चली जाना ......

ये थोडी सी आसान सी राह है ,
इसमे भी दुःख है, दर्द है ;
पर ये थकाने वाली राह नही है ..
ये मोहब्बत की राह है !!!

जहाँ ये रास्ता ख़त्म होंगा ,
वहां तुम्हे एक कब्र मिलेंगी ;
उस कब्र के पत्थर अब उखड़ने लगे है ,
कब्र से एक झाड़ उग आया है ;
पहले इसमे फूल उगते थे ,अब कांटो से भरा पड़ा है...
कब्र पर कोई अपना , कई दिन पहले ;
कुछ मोमबत्तियां जला कर छोड़ गया था ....
जिसे वक्त की आँधियों ने बुझा दिया था !
अब पिघली हुई मोम आंसुओं की
शक्लें लिए कब्र पर पड़ी है
काश , कोई उस कब्र को सवांरने वाला होता ..
पर मोहब्बत की कब्रों के साथ
ज़माना ऐसा ही सलुख करता है ..

कुछ फूल आस-पास बिखरे पड़े है
वो सब सुख चुके है
पर अब भी चांदनी रातों में उनसे खुशबू आती है .....

चारो तरफ़ बड़ी वीरानी है ..
तुम उस कब्र के पास चली आना ,
अपने आँचल से उसे साफ़ कर देना ;
अपने आंसुओं से उसे धो देना ,
फिर अपने नर्म लबों से ;
उसके सिरहाने को चूम लेना !

वो मेरी कब्र है !!!

वहां तुम्हे सकून मिलेंगा
वहां तुम्हे एहसास होंगा
कि मोहब्बत हमेशा जिंदा रहती है ..!!

मेरी कब्र पर जब तुम आओंगी ;
तो , वहां कि मनहूसियत ;
थोड़े वक्त के लिए चली जायेंगी ,
कुछ यादें ताज़ा हो जायेंगी ..!!

जब सन्नाटा कुछ और गहरा जायेगा ,
तब, तुम्हे एक आवाज सुनाई देंगी ;
तुम्हे मेरी आह सुनाई देंगी ;


क्योकि मेरी वो कब्र
तुमने ही तो बनाई है !!!!

तुम्हे याद आयेगा कि
कैसे तुमने मेरा ज़नाजा
वहां दफनाया था ...!!

वक्त बड़ा बेरहम है ......

जब तुम वापस लौटोंगी
तो , मेरी आँखें ,तुम्हे ..
दूर तलक जातें हुए देखेंगी ....!

तुम;
फिर कब अओंगी मेरी कब्र पर !!!!!!!

Tuesday, November 18, 2008

तू

मेरी दुनिया में जब मैं खामोश रहती हूँ ,
तो ,
मैं अक्सर सोचती हूँ,
कि
खुदा ने मेरे ख्वाबों को छोटा क्यों बनाया ……

एक ख्वाब की करवट बदलती हूँ तो;
तेरी मुस्कारती हुई आँखे नज़र आती है,
तेरी होठों की शरारत याद आती है,
तेरे बाजुओ की पनाह पुकारती है,
तेरी नाख़तम बातों की गूँज सुनाई देती है,
तेरी बेपनाह मोहब्बत याद आती है .........

तेरी क़समें ,तेरे वादें ,तेरे सपने ,तेरी हकीक़त ॥
तेरे जिस्म की खुशबु ,तेरा आना , तेरा जाना ॥
अल्लाह .....कितनी यादें है तेरी........

दूसरे ख्वाब की करवट बदली तो ,तू यहाँ नही था.....

तू कहाँ चला गया....

खुदाया !!!!

ये आज कौन पराया मेरे पास लेटा है........

Monday, November 17, 2008

झील

आज शाम सोचा ;
कि ,
तुम्हे एक झील दिखा लाऊं ...
पता नही तुमने उसे देखा है कि नही..
देवताओं ने उसे एक नाम दिया है….

उसे जिंदगी की झील कहते है...

बुजुर्ग ,अक्सर आलाव के पास बैठकर,
सर्द रातों में बतातें है कि',
वह दुनिया कि सबसे गहरी झील है
उसमे जो डूबा ,
फिर वह उभर कर नही आ पाया .

उसे जिंदगी की झील कहते है...

आज शाम ,
जब मैं तुम्हे ,अपने संग ,
उस झील के पास लेकर गया ,
तो तुम काँप रही थी ,
डर रही थी;
सहम कर सिसक रही थी.
क्योंकि ;
तुम्हे डर था; कहीं मैं...
तुम्हे उस झील में डुबो न दूँ .

पर ऐसा नही हुआ ..

मैंने तुम्हे उस झील में ;
चाँद सितारों को दिखाया ;
मोहब्बत करने वालों को दिखाया;
उनकी पाक मोहब्बत को दिखाया ;

तुमने बहुत देर तक,
उस झील में ,
अपना प्रतिबिम्ब तलाशा ,

तुम ढूंढ रही थी..
कि
शायद मैं भी दिखूं..
तुम्हारे संग,
पर
ईश्वर ने मुझे छला…

मैं क्या.. मेरी परछाई भी ,
झील में नही थी ..तुम्हारे संग !!!

तुम रोने लगी ....
तुम्हारे आंसू , बूँद बूँद
खून बनकर झील में गिरते गए ..
फिर झील का गन्दा और जहरीला पानी साफ होते गया..
क्योंकि अक्सर जिंदगी की झीलें ..
गन्दी और जहरीली होती है ..

फिर, तुमने
मुझे आँखे भर कर देखा...
मुझे अपनी बांहों में समेटा ...
मेरे माथे को चूमा..
और झील में छलांग लगा दी ...
तुम उसमें डूबकर मर गयी .

और मैं...
मैं जिंदा रह गया ,
तुम्हारी यादों के अवशेष लेकर,
तुम्हारे न मिले शव की राख ;
अपने मन पर मलकर
मैं जिंदा रह गया.

मैं युगों तक जीवित रहूंगा
और तुम्हे आश्चर्य होंगा पर ,
मैं तुम्हे अब भी
अपनी आत्मा की झील में
सदा देखते रहता हूँ..

और हमेशा देखते रहूंगा..
इस युग से अनंत तक ..
अनंत से आदि तक ..
आदि से अंत तक..
देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...देखता रहूंगा ...

Saturday, November 15, 2008

तस्वीर

THIS POEM TAKES YOU ALL TO A WORLD OF PURE LOVE ; WHERE YOU WILL TRAVEL ALONG WITH THE WRITER ON A TIMELESS JOURNEY.... ONE OF MY ALL TIME FAVORITE COMPOSITIONS ...................

तस्वीर

मैंने चाहा कि
तेरी तस्वीर बना लूँ इस दुनिया के लिए,
क्योंकि मुझमें तो है तू ,

हमेशा के लिए....

पर तस्वीर बनाने का साजो समान नही था मेरे पास.
फिर मैं ढुढ्ने निकला ;

वह सारा समान ,
मोहब्बत के बाज़ार में...

बहुत ढूंढा , पर कहीं नही मिला;

फिर किसी मोड़ पर किसी दरवेश ने कहा,
आगे है कुछ मोड़ ,तुम्हारी उम्र के ,
उन्हें पार कर लो....


वहाँ एक अंधे फकीर कि मोहब्बत की दूकान है;
वहाँ ,मुझे प्यार कर हर समान मिल जायेगा..

मैंने वो मोड़ पार किए ,सिर्फ़ तेरी यादों के सहारे !!


वहाँ वो अँधा फकीर खड़ा था ,
मोहब्बत का समान बेच रहा था..
मुझ जैसे, तुझ जैसे,
कई लोग थे वहाँ अपने अपने यादों के सलीबों और सायों के साथ....

लोग हर तरह के मौसम को सहते वहाँ खड़े थे...
शमशान के प्रेतों की तरह .......

उस फकीर की मरजी का इंतज़ार कर रहे थे....
फकीर बड़ा अलमस्त था...
खुदा का नेक बन्दा था...
अँधा था......

मैंने पूछा तो पता चला कि
मोहब्बत ने उसे अँधा कर दिया है !!
या अल्लाह ! क्या मोहब्बत इतनी बुरी होती है..
मैं भी किस दुनिया में भटक रहा था....


खैर ; जब मेरी बारी आई
तो ,

उस अंधे फकीर ने ,
तेरा नाम लिया ,और मुझे चौंका दिया ,
मुझसे कुछ नही लिया.. और
तस्वीर बनाने का साजो समान दिया...
सच... कैसे कैसे जादू होते है मोहब्बत के बाजारों में !!!!

मैं अपने सपनो के घर आया ..
तेरी तस्वीर बनाने की कोशिश की ,
पर खुदा जाने क्यों... तेरी तस्वीर न बन पाई...


कागज़ पर कागज़ ख़त्म होते गए ...
उम्र के साल दर साल गुजरते गये...
पूरी उम्र गुजर गई
पर
तेरी तस्वीर न बनी ,
उसे न बनना था ,इस दुनिया के लिए ....न बनी !!

जब मौत आई तो ,

मैंने कहा ,दो घड़ी रुक जा ;
ज़िन्दगी का एक आखरी कागज़ बचा है ॥उस पर मैं "उसकी" तस्वीर बना लूँ !


मौत ने हँसते हुए उस कागज़ पर ,
तेरा और मेरा नाम लिख दिया ;
और मुझे अपने आगोश में ले लिया .
उसने उस कागज़ को मेरे जनाजे पर रख दिया ,
और मुझे दुनियावालों ने फूंक दिया.
और फिर..
इस दुनिया से एक और मोहब्बत की रूह फना हो गई..





Friday, November 14, 2008

पागल



तेरी साँसे महकती है मेरी साँसों में,

तेरे होंठ दहकते है मेरे होंठों पर,

तेरी जुल्फों का साया है मेरे चेहरे पर ,

सारी दुनिया है मेरे पास ,
पर तू नही।


दुनियावालो देखो तो ज़रा मुझे ॥

सपने चिपका कर रखे है ..

मैंने अपने जिस्म पर !!

लोग कहते है कि,
मैं पागल हो गया हूँ……

और एक दिन मैंने सुना कि ,

तुने भी कहा है ... वो पागल हो गया है ॥

शायद ,
अब मैं ,
सच में ,
पागल हो गया हूँ..

रंगों की दुनिया

पता नही तुम रंगो को पहचानती होंगी या नही,

कई चाँद की राते तुमने उसके साथ बितायी होंगी,
उसका रंग दूधिया होता है !

कई सूरज के दिन तुने उसके साथ काटे होंगे,
उसका रंग सुनहरा होता है !!

जलते हुए जिस्मों की थकान जब तू उसके संग उतरती होंगी,
तब उसका रंग बादामी होता है !!!

जिस घास पर तू उसके संग लेटकर ख्याल देखती होंगी,
उसका रंग हरा होता है !!!!

जिस आसमान के नीचे ,तुने उसके सपनो को जन्म होंगा;
उसका रंग नीला होता है !!!!!

तुम्हे अपनी शादी का रंग याद है न,
उसका रंग लाल था !!!!!!!

अब तुम्हे मेरी कब्र का रंग पहचानना है ;
उसका रंग मालूम है तुम्हे?

सपने

सुनो ,
ज़रा फिर से सुनो.

कहीं मेरी आवाज तो नही,

देखो तो ज़रा ,
देखो ,कहीं तुम्हारी गली में मेरा साया तो नही,


दरवाज़ा तो खोलो ,
शायद ,मैंने दरवाज़ा ठ्कठाकाया है..

कैसी ‘पराई’ नींद में खोयी हुई हो तुम,

सारे सपने झूठे नही होते
देखो तो ज़रा…..शायद मैं आया हूँ !!!!

प्यार

सुना है कि मुझे कुछ हो गया था...
बहुत दर्द होता था मुझे,
सोचता था, कोई खुदा ;
तुम्हारे नाम का फाहा ही रख दे मेरे दर्द पर…

कोई दवा काम ना देती थी…
कोई दुआ काम ना आती थी…

और फिर मैं मर गया ।
जब मेरी कब्र बन रही थी,
तो
मैंने पूछा कि मुझे हुआ क्या था।
लोगो ने कहा;
" प्यार "

Tuesday, November 11, 2008

राह


सूरज चड़ता था और उतरता था....
चाँद चड़ता था और उतरता था....
जिंदगी कहीं भी रुक नही पा रही थी,
वक्त के निशान पीछे छुठे जा रहे थे ,
लेकिन मैं वहीं खड़ा था....
जहाँ तुमने मुझे छोडा था....
बहुत बरस हुए ,तुझे ; मुझे भुलाए हुये !

मेरे घर का कुछ हिस्सा अब ढ़ह गया है !!
मुहल्ले के बच्चे अब जवान हो गए है ,
बरगद का वह पेड़ ,जिस पर तेरा मेरा नाम लिखा था
शहर वालों ने काट दिया है !!!

जिनके साथ मैं जिया ,वह मर चुके है
मैं भी चंद रोजों में मरने वाला हूं
पर,
मेरे दिल का घोंसला ,जो तेरे लिए मैंने बनाया था,
अब भी तेरी राह देखता है.....

Monday, November 10, 2008

सर्द रातें

सर्द रातें

इन सर्द रातों में ,तुझे कुछ याद हो न हो .....
मुझे तो सारी बातें याद है.......
अब तक , जो तेरे - मेरे साथ गुजरी , और जो नही गुजरी ...
वो सब कुछ याद है ...
और अब मेरे आंसू ओस की बूंदे बन जाती है ..

ऐसी ही एक सर्द रात थी , जब हम कहीं मिले
और एक मुलाकात से दुसरे मुलाकात की बात बनी ..

ऐसी ही एक सर्द रात में तेरे आंसुओ ने मेरी पलकों को भिगोया था ..
और सारी रात हमने कोई पुरानी सी ग़ज़ल सुनी थी ..

ऐसी ही एक सर्द रात में हमने रात भर आलाव तापा था ,
और ज़िन्दगी की राख की आग को अपने जिस्मो पर सहा था......

ऐसी ही एक सर्द रात में हमने वो पुरानी कसमे खायी थी ..
जिनमे मिलने और मिलकर साथ रहने की बातें होती है ..

ऐसी ही एक सर्द रात में तुमने मेरा हाथ एक अँधेरी सड़क के
सूने मोड़ पर छोडा था ..
और मैं तन्हाई का तमाशबीन बन कर रह गया था ..

और उस सर्द रात से , आज तक मुझे हर रात , सर्द रात नज़र आती है ..
मैं तुम्हे याद करता हूँ और अपने आंसुओं से ओस की बूंदे बनाता हूँ...

खुदा जाने, तुम्हे अब ये रातें सर्द लगती है या नही ..
खुदा जाने , तुम्हे अब मेरी याद आती है या नही....
खुदा जाने ,अब किसी सर्द रात को हम दोबारा मिलेंगे या नही ...

आज की रात बहुत सर्द है ..

मालूम होता है ,
मेरी यादो के साथ मेरी जान लेकर जाएँगी...
तब , शायद, किसी सर्द रात को , तुम्हे मेरी याद आयें......

एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता

घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ...